घर जो थी , वो भी जल चुकी है
फिर भी आशा है , कुछ अच्छा होने की ,कुछ पाने की |
फिर भी आशा है , कुछ अच्छा होने की ,कुछ पाने की |
अब बचा कुछ भी नहीं, इस आशियाने में
लगी है दुनिया , इसे भी जलाने में
पर , सबकुछ तो जल चुकी है
कुछ भी बचा न इस गरीब खाने में
फिर भी आशा है...........
कुछ अच्छा होने की , मंजिल पाने की |
सोचा था , कट जायेंगें जीवन की घड़ियाँ हंसते-हंसते
पर , जीवन में एसा मोड़ आया
खुबसूरत घड़ियों में निराशा घोल आया
फिर भी एक आस है , प्यास है
कुछ अच्छा होने की , मंजिल पाने की |
सबकुछ खो चूका हूँ
अब कुछ भी नहीं है ,खोने की
अब तो बस एक आस है.......
जीवन में , सुनहले पलों की होने की
कुछ अच्छा होने की मंजिल पाने की
आस है फिर से आशियाना बसाने की |
नहीं जानता , कब तक रहेगा अँधेरा जीवन में
कब तक रहेगा आशाओं का सूरज डूबा हुआ
फिर भी एक आस है .........
उजाला होने की , मंजिल पाने की |
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